गुरुवार, 27 जनवरी 2011

कंपनी बदलने का विकल्प

मोबाइल फोन के उपभोक्ताओं को अपना नंबर बदले बगैर ही सर्विस प्रोवाइडर बदलने की आजादी तो मिल गई है, लेकिन एक बड़ा सवाल यह है कि क्या इसमें वे बेहतर सुविधाएं प्राप्त कर सकेंगे। आज मोबाइल मार्केट में बडे़-बडे़ प्लेयर हैं और सभी उपभोक्ताओं के समक्ष एक-दूसरे बढ़कर लुभावने प्रस्ताव रख रहे हैं। मोबाइल नंबर पोर्टेबिलिटी (एमएनपी) लागू होने के बाद उपभोक्ताओं के मन एक बड़ी दुविधा पैदा हो गई है कि वे अपने मौजूदा प्रोवाइडर के प्रति वफादार रहें या फिर किसी नए प्रोवाइडर को अपनाएं। यह बदलाव उपभोक्ता के लिए आर्थिक दृष्टि से भारी भी पड़ सकता है क्योंकि वह नई कंपनी का जो भी प्लान चुनेगा, वह जरूरी नहीं कि उसके मौजूदा बिल के समकक्ष ही हो। मोबाइल पोर्टेबिलिटी एक बड़ी तकनीकी सुविधा जरूर है। सेल्युलर कंपनियों के कामकाज से बहुत से उपभोक्ता असंतुष्ट हैं। कभी आपका फोन आउट ऑफ रीच होता है तो कभी किसी इमारत में दाखिल होते ही फोन के सिगनल गायब हो जाते हैं। बिलिंग और कस्टमर केयर के मामले में भी अकसर शिकायतें आती रहती हैं। एसएमएस जैसी बुनियादी सुविधा में भी इन कंपनियों का रिकार्ड बहुत अच्छा नहीं है। ट्राई के डंडे के बावजूद कंपनियां अपने कामकाज में पारदर्शिता कायम रखने में विफल रही हैं। अब नंबर पोर्टेबिलिटी की आड़ में इन कंपनियों को अपना बिजनेस चमकाने का नया अवसर मिल गया है। एमएनपी का प्रचलन कुछ देशों में पहले से हो रहा है। भारत में पिछले साल इसे हरियाणा में लागू किया गया था। वहां करीब एक लाख मोबाइल उपभोक्ताओं ने अपने ऑपरेटर बदल लिए हैं। सिर्फ दो-ढाई महीने के भीतर इतनी बड़ी तादाद में ऑपरेटरों को बदलने का अर्थ साफ है कि उपभोक्ता उनकी सेवाओं से संतुष्ट नहीं हैं। मोबाइल मार्केट पर एमएनपी का कितना असर पड़ता है, इसका अंदाजा अगले छह महीनों में लग जाएगा। विभिन्न ऑपरेटरों के बीच इस बात की होड़ लगेगी कि वे अपने मौजूदा ग्राहकों को छिनने से कैसे रोकें और नए ग्राहक कैसे बनाएं। कुछ मामलों में इससे उपभोक्ताओं को फायदा भी हो सकती है क्योंकि विभिन्न नेटवर्क अपनी सेवाओं की खामियों को दूर करने के लिए विवश होंगे। एक बड़ा सवाल यह है कि उपभोक्ता के लिए एमएनपी कितनी लाभप्रद होगी। वह सिर्फ बेहतर सुविधा और बेहतर कस्टमर केयर प्राप्त करने की दृष्टि से ही अपना ऑपरेटर बदलने के बारे में सोचेगा। वह एक बेहतर टैरिफ पैकेज की भी अपेक्षा करेगा। लेकिन उसकी ये उम्मीदें तभी पूरी हो पाएंगी, जब ऑपरेटरों को लगेगा कि उनके उपभोक्ताओं की संख्या बढ़ रही है। सर्वेक्षणों से पता चलता है कि बाजार पर एमएनपी का अधिक प्रभाव नहीं पड़ेगा। इसका अर्थ यह हुआ कि कंपनियां जितने नए उपभोक्ता हासिल करेंगी, लगभग उतने ही उनके हाथ से छिन जाएंगे। ऐसी स्थिति में वे अपनी सर्विस या कस्टमर केयर में कोई बड़ा भारी परिवर्तन नहीं कर पाएंगी। कोई भी उपभोक्ता सुविधाओं में सुधार की अपेक्षा से ही अपने ऑपरेटर को बदलेगा, लेकिन एक बड़ा प्रश्न यह है कि उसके लिए वास्तविक अंतर कितना होगा। ट्राई के सितंबर 2009 के आंकड़ों के मुताबिक उत्तर प्रदेश में कॉल सेटअप (कनेक्शन मिलने) की सफलता की दर सबसे कम 97.26 प्रतिशत थी और मुंबई में सबसे ज्यादा 99.99 फीसदी। इसी तरह पूरे देश में कॉल ड्राप की दर करीब तीन प्रतिशत थी। राजस्थान में यह दर सबसे कम 1.9 प्रतिशत थी। अच्छी आवाज के साथ कनेक्टिविटी के मामले में किसी भी ऑपरेटर का रिकॉर्ड शत-प्रतिशत नहीं रहा है। यह बात भी सभी जानते हैं कि कंपनियों के टैरिफ इतने कम हैं कि उपभोक्ता के समक्ष और कम टैरिफ के विकल्प की संभावना बहुत कम है।

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